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________________ www.vitragvani.com 124] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 - सम्यक्त्व सूर्य स्वसन्मुखता से अन्तरस्वभाव के निर्विकल्प अनुभवपूर्वक धर्मात्मा के अन्तर में निःशङ्कता इत्यादि किरणों से जगमगाता जो सम्यग्दर्शनरूपी सूर्य उदित हुआ, उस सूर्य का प्रताप आठों कर्मों को भस्म कर डालता है और अष्ट महागुण संयुक्त सिद्धपद प्राप्त कराता है। समकिती धर्मात्मा के आठ गुणों का अद्भुत वर्णन समयसार में कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने किया है; उस पर हुआ विवेचन यहाँ दिया जाता है। सम्यग्दृष्टि-अन्तरात्मा की अद्भुत अन्तर परिणति की महिमापूर्वक आचार्यदेव कहते हैं कि सम्यग्दृष्टि को निःशङ्कता आदि जो आठ चिह्न हैं, वे आठ कर्मों को हनन कर डालते हैं। समकिती धर्मात्मा, अन्तर्दृष्टि द्वारा निजरस से भरपूर ऐसे अपने ज्ञानस्वरूप को नि:शङ्करूप से अनुभव करता है। ज्ञान के अनुभव में रागादि विकार को जरा भी नहीं मिलाता। निःशङ्करूप से ज्ञानस्वरूप का अनुभव समस्त कर्मों को घात कर डालता है। ज्ञानस्वरूप के अनुभव द्वारा ही आठ कर्मों का नाश होता है। श्रद्धा में जहाँ परिपूर्ण चैतन्यस्वभाव को रागादि से पार जाना, वहाँ फिर उस चैतन्यस्वभाव के अनुभव द्वारा ज्ञानी को प्रतिक्षण कर्मों का नाश ही होता जाता है और नवीन कर्मों का बन्धन नहीं होता – इस प्रकार श्रद्धा के बल से धर्मी को नियम से निर्जरा होती है। देखो! यह श्रद्धा की महिमा! मैं ज्ञायकस्वभाव हूँ-ऐसे स्वभावसन्मुख दृष्टि होने पर, जो सम्यक्त्वरूपी जगमगाता सूर्य उदित हुआ, उस सूर्य का प्रताप समस्त कर्मों को नष्ट कर डालता Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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