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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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की ठण्डी हवा आने पर, उस ओर जाने की कैसी छटपटाहट होती है ! और फिर पानी पीते ही कितना तृप्त होता है ! इसी प्रकार जिसे इस भव रण में भटकते हुए आत्मा का स्वरूप जानने की चटपटी हुई है, वह शुद्ध आत्मा की बात सुनने पर आनन्दित होता है - उल्लसित होता है। उसके अनुभव के लिये उसे छटपटाहट जगती है और पश्चात् सम्यक् पुरुषार्थ द्वारा आत्मस्वरूप को पाकर वह तृप्त होता है। जिसे शुद्ध आत्मस्वरूप जानने की तीव्र जिज्ञासा हुई है-ऐसे जिज्ञासु जीव को यह बात सुनायी जाती है।
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एक-दो भव में केवलज्ञान लेकर... जिसने शान्ति की अक्षयनिधि को देखा है; वह धर्मी जीव, देह छूटने के समय शान्ति, शान्ति, शान्तिपूर्वक अन्तरङ्ग में आनन्द के नाथ की शरण लेकर स्वरूप में विशेष-विशेष डुबकी मारता है। जिसने आनन्द के नाथ निज ज्ञायकभाव का अनुभव किया
और मरण के समय निज आनन्द सरोवर में लीन होकर शान्तिपूर्वक देह का परित्याग किया, उसका जीवन और उसकी साधना, वास्तव मे सफल है; वह एक-दो भव में केवलज्ञान लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा।
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