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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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बार
हे वीरजननी! पुत्र तेरा
जाता है मोक्षधाम में, नहीं मात दूजी धारेगा...
धारो न शंका लेश वहाँ ।
RAGRA
अरे! चौरासी के अवतार में जीव को कहीं सुख नहीं, धर्मी पुत्र; जिसने आत्मा को जाना है और संसार से विरक्त है-वह अपनी माता को कहता है कि हे माता! इस संसार में मुझे कहीं चैन नहीं; यह संसार क्लेश और दुःख से भरा हुआ है। इससे मैं अब छूटना चाहता हूँ और आनन्द से भरपूर मेरा आत्मा, उसे साधने के लिये मैं वन में जाना चाहता हूँ। इसलिए हे माता! दीक्षा के लिये मुझे आज्ञा दे। हम इस संसार में दूसरी माता नहीं करेंगे; इस प्रकार वैराग्यवन्त धर्मात्मा आत्मा को साधने के लिये चल निकलता है। अन्दर जिसे राग से भिन्न आत्मा का अनुभव है, उसकी यह बात है। जिसने अन्दर में मोक्ष का मार्ग देखा है, वह उसे साधता है।
कलैयाकुंवर जैसे आठ-आठ वर्ष के राजकुंवर को आत्मा के भानसहित वैराग्य होने पर, आनन्द में लीनता की जब भावना जगती है, तब माता के समीप जाकर दीक्षा के लिये आज्ञा माँगता है कि हे माता! आत्मा के परम आनन्द को साधने के लिये मैं अब जाता हूँ... हे माता ! सुखी होने के लिये मैं जाता हूँ... आत्मा के आनन्द का धाम अन्तर में देखा है, उसे साधने के लिये जाता हूँ... इसलिए मुझे आज्ञा दे ! माता की आँख में से आँसू की धारा बहती है और पुत्र के रोम-रोम में वैराग्य की छाया छा गयी है; वह कहता
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