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________________ www.vitragvani.com 108] [सम्यग्दर्शन : भाग-4 इनका यत्न करें और इनके जैसा अपना जीवन बनावें... इसके लिये जरा भी प्रमादी न होवें और परम बहुमानपूर्वक इन सच्चे तीन रत्नों का सेवन करें... अपने वीतरागी अरहन्तदेव, अपने वीतरागी निर्ग्रन्थ गुरु और अपने वीतरागी शास्त्र इस जगत में सर्वश्रेष्ठ, सत्य और आत्महित के लिये रत्नत्रय देनेवाले हैं... उनका ही सेवन करो और इसके अतिरिक्त अन्य मार्ग की ओर भूलचूक से भी जरा भी झाँककर मत देखो। जयवन्त वर्तो ये 'तीन रत्न'... कि जो तीन रत्न के दातार हैं। वह उत्साहपूर्वक उसका सेवन करता है जिस प्रकार थके हुए व्यक्ति को विश्राम मिलने पर अथवा वाहन आदि की सुविधा मिलने पर वह हर्षित होता है और रोग से पीड़ित मनुष्य को वैद्य मिलने पर वह उत्साहित होता है; इसी प्रकार भव-भ्रमण कर करके थके हुए और आत्मभ्रान्ति के रोग से पीड़ित जीव को थकान उतारनेवाली और रोग मिटानेवाली चैतन्यस्वरूप की बात कान में पड़ते ही, वह उत्साहपूर्वक उसका सेवन करता है। सच्चे सद्गुरु वैद्य ने जिस प्रकार कहा हो, उस प्रकार वह चैतन्य का सेवन करता है। सन्त के समीप दीन होकर भिखारी की तरह 'आत्मा' माँगता है कि प्रभु ! मुझे आत्मा का स्वरूप समझाओ। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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