________________
www.vitragvani.com
सम्यग्दर्शन : भाग-4]
[105
काम किया है... और मुमुक्षु जीवों पर महान उपकार किया है। उन्होंने तो अन्तर में श्रुतज्ञान की पुकार करके केवलज्ञान को बुलाया है; श्रुतज्ञान में केवलज्ञान का निर्णय आ जाता है। केवलज्ञान का निर्णय न हो, तब तो श्रुतज्ञान ही सच्चा नहीं है। जहाँ अपने सर्वज्ञस्वभाव में स्वसन्मुख होता हुआ श्रुतज्ञान जागृत हुआ, वहाँ सर्वज्ञपद प्रगट हुए बिना नहीं रहता। ऐसे स्वभाव को जानने से जीव को सम्यग्दर्शन होता है और स्वसन्मुख होकर वह शीघ्र शीघ्र मोक्ष में जाता है।
★ ज्ञानस्वभाव के साथ सन्धि करने की विकल्प में ताकत नहीं है, ज्ञान में स्वभाव को 'टच' किया, तब सच्चा निर्णय हुआ।
* ज्ञानस्वभाव के निर्णय में विकल्प से ज्ञान अधिक (भिन्न) हुआ है, ज्ञान और विकल्प के बीच बिजली पड़ चुकी है, दोनों के बीच दरार पड़ गयी है, वह दरार अब संधेगी नहीं।
* ऐसे आत्मनिर्णय के बल से सम्यक्त्व प्राप्त होता है।
Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.