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________________ www.vitragvani.com 102] [ सम्यग्दर्शन : भाग-4 ज्ञानचेतना के बिना मोक्षमार्ग नहीं होता । आनन्दमय ज्ञानचेतना को परिणमाते हुए ज्ञानी, चैतन्य के प्रशमरस को पीते हैं। ज्ञानचेतना आनन्दसहित होती है। ज्ञानचेतना खिले और आनन्द का अनुभव न हो—ऐसा नहीं होता। राग से भिन्न पड़कर शुद्धस्वभाव में एक हुई, ऐसी ज्ञानचेतना शुद्धपरिणतिरूप वीतराग वैभव से सहित है। अरे! मनुष्यपना प्राप्त करके यह ज्ञानचेतना प्रगट करने का अवसर है। इस वस्तु को ख्याल में तो ले । सच्चा लक्ष्य करके उसका पक्ष करने से, उसके अभ्यास में दक्ष होकर इसका अनुभव होगा, परन्तु जिसे लक्ष्य और पक्ष ही मिथ्या हैं, वह शुद्धता का अनुभव कहाँ से करेगा ? अज्ञानी राग का पक्ष करता है - राग से कुछ लाभ होगा—ऐसा मानकर उसका पक्ष करता है; इसलिए वह अपने को रागादि अशुद्धतारूप ही अनुभव करता है । धर्मी अपने शुद्धस्वभाव का अनुभव करता है; ऐसा शुद्ध अनुभव मोक्षमार्ग है। जो ऐसे शुद्ध अनुभवरूप ज्ञानचेतना के बिना अपने को धर्मी मानता है, उसे धर्म के सच्चे स्वरूप का पता भी नहीं है, धर्म को या धर्मी को वह पहचानता ही नहीं है । शुद्ध चेतना वस्तु, रागरहित है; तो उसका अनुभव भी रागरहित ही होता है। वस्तु, रागरूप नहीं; वैसे अनुभवरूप पर्याय भी रागरूप नहीं है। साधकपने की भूमिका में राग होता है परन्तु उस समय भी धर्मी की चेतना तो राग से भिन्न ही परिणमती है । चेतना को और राग को कुछ लेना-देना नहीं है । चेतना तो स्वभाव को स्पर्श करनेवाली है, वह परभाव को स्पर्श नहीं करती। चौथे गुणस्थान की ज्ञानचेतना या केवली भगवान की ज्ञानचेतना, ये दोनों ज्ञानचेतना, रागरहित ही है। आत्मा के वैभव में एकाग्र हुई आनन्दमय ज्ञानचेतना Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007771
Book TitleSamyag Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages207
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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