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सम्यग्दर्शन : भाग-4]
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होना, इसका नाम बन्ध है। शुद्धपरिणमन, अर्थात् शुद्धस्वरूप का अनुभव; जिस ज्ञान द्वारा ऐसा अनुभव हो, वह ज्ञान, मोक्ष का साधन है। ऐसा अनुभव होने पर शुद्धपरिणमन हुआ, इसलिए अशुद्धपरिणमन छूट गया और पुद्गल में कर्म अवस्था छूट गयीशुद्ध जीव अपने स्वरूप में रहा-उस दशा का नाम मोक्ष है। 'मोक्ष कह्यौ निज शुद्धता।'
-ऐसे मोक्ष का उपाय क्या? मोक्ष, वह पूर्ण शुद्धपरिणमन है और उसका कारण भी शुद्धता ही है। अशुद्धता का कोई अंश, मोक्ष का कारण नहीं होता। मोक्ष के साधन का बहुत सरस स्पष्टीकरण इस 'प्रज्ञाछैनी' के श्लोक में किया है। ___ तीक्ष्ण प्रज्ञाछैनी, अर्थात् तीखी ज्ञानचेतना, उग्र ज्ञानचेतना; उसे निपुण जीव, अर्थात् भेदज्ञान में अत्यन्त प्रवीण जीव, सावधान होकर आत्मा और बन्ध के बीच के सूक्ष्म भेद में इस प्रकार डालते हैं कि शीघ्र दोनों अत्यन्त भिन्न अनुभव में आते हैं; ज्ञानचेतना अन्तर्मुख होकर अपने आत्मा को रागरहित शुद्ध अनुभव करती है; ऐसा अनुभव ही मोक्ष का साधन है। जो ज्ञान के साथ राग को मिलावे-उसे शुद्ध का अनुभव नहीं होता, भेदज्ञान नहीं होता, मोक्षमार्ग नहीं होता। शुद्धपरिणमन, वह राग से सर्वथा भिन्न है। सर्वथा रागरहित शुद्ध अनुभव ही मोक्षसाधन है। राग में खड़े रहकर शुद्ध को अनुभव नहीं किया जा सकता। साधकदशा के समय भी जितने रागादिभाव हैं, वे सभी ज्ञानचेतना से भिन्न हैं; वे कोई जीव का शुद्धपरिणमन नहीं है। जीव का शुद्धपरिणमन तो ज्ञानचेतनारूप और अनन्त चतुष्टयस्वरूप है; वह राग से सर्वथा भिन्न है। द्रव्य के स्वभाव की जाति का परिणमन हो, उसे ही द्रव्य
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