SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] धर्मात्मा का स्वरूप-सञ्चेतन जो अनादि से अत्यन्त अप्रतिबुद्ध था और विरक्त ज्ञानी गुरु द्वारा निरन्तर परम अनुग्रहपूर्वक शुद्ध आत्मा का स्वरूप समझाये जाने से, सच्चे उद्यम द्वारा समझकर जो ज्ञानी हुआ, वह शिष्य अपने आत्मा का कैसा अनुभव करता है - उसका यह वर्णन है। अहमेक्को खलु सुद्धो दंसणणाणमइओ सदारूवी। ण वि अस्थि मज्झ किंचि वि अण्णं परमाणुमेत्तं पि॥ आत्मा का जैसा स्वरूप है, वैसा गुरु के उपदेश से जानकर अनुभव किया; वह अनुभव कैसा हुआ? उसका वर्णन करते हुए शिष्य कहता है कि पहले तो मैं अनादि से मोहरूप अज्ञान से अत्यन्त अप्रतिबुद्ध था, बिल्कुल अज्ञानी था। फिर विरक्त गुरुओं ने परम कृपा करके मुझे निरन्तर आत्मा का स्वरूप समझाया। जिन्होंने स्वयं आत्मा के आनन्द का अनुभव किया है... जिनका संसार शान्त हो गया है...जो शान्त होकर अन्तर में स्थिर हो गये हैं... ऐसे परम वैरागी विरक्त गुरु ने महा अनुग्रह करके मुझे बारम्बार शुद्ध आत्मस्वरूप समझाया। जिसे समझने की मुझे निरन्तर धुन थी, वही गुरु ने समझाया। ___ श्रीगुरु ने अनुग्रह करके, जैसा मेरा स्वभाव कहा, वैसा झेलकर मैंने बारम्बार उसे समझाने का उद्यम किया... 'अहो, मैं तो ज्ञान हूँ, आनन्द ही मेरा स्वभाव है' – ऐसा मेरे गुरु ने मुझसे कहा; उसका मैंने सर्व प्रकार के उद्यम से अन्तर्मंथन करके निर्णय किया... मेरा उद्यम होने से काललब्धि भी साथ आ गयी... कर्म भी हट गये... सर्व प्रकार के उद्यम से सावधान होकर मैंने अपना स्वरूप समझा। मैं अपना शुद्धस्वरूप जैसा समझा, वैसा ही सर्वज्ञ परमात्मा ने और ___Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy