SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 61
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [45 पर्याय, शुद्धात्मा में अन्तर्लीन होती है। पर्याय अन्तर्लीन होने से मोह का क्षय होता है । इस प्रकार भगवान अरहन्त के ज्ञान द्वारा, मोह के क्षय का उपाय बतलाया। अब, इसी बात को दूसरे प्रकार से बतलाते हैं, उसमें शास्त्र के ज्ञान द्वारा मोह के अभाव की विधि बतलाते हैं। प्रथम तो जिसने प्रथम भूमिका में गमन किया है - ऐसे जीव की बात है। सर्वज्ञ भगवान कैसे होते हैं ? मेरा आत्मा कैसा है ? मुझे आत्मा का स्वरूप समझकर अपना हित करना है जिसे ऐसा लक्ष्य होता है, वह जीव, मोह के नाश के लिए शास्त्र का अभ्यास किस प्रकार करता है ? - वह यहाँ बतलाते हैं । वह जीव, सर्वज्ञोपज्ञ द्रव्यश्रुत को प्राप्त करके, अर्थात् भगवान द्वारा कथित सच्चे आगम कैसे होते हैं ? – यह निर्णय करके, फिर उसी में क्रीड़ा करता है, अर्थात् आगम में भगवान ने क्या कहा है ? इस बात का निर्णय करने के लिए सतत् अन्तर-मन्थन करता है । द्रव्यश्रुत का वाच्यरूप शुद्धात्मा कैसा है ? - इसका चिन्तन-मनन करना ही द्रव्यश्रुत में क्रीड़ा है। - द्रव्यश्रुत के रहस्य के गहन विचार में उतरने पर मुमुक्षु को यह लगता है कि अहा ! इसमें ऐसी गम्भीरता है । राजा पैर धोता हो, तब जो आनन्द आता है, हर्ष का अनुभव होता है, उससे भी श्रुत के गहन रहस्यों के समाधान होने पर आनेवाला आनन्द तो जगत् से अलग जाति का है । श्रुत के रहस्यों के चिन्तन का रस बढ़ने पर, जगत् के विषयों का रस उड़ जाता है । अहो ! श्रुतज्ञान के अर्थ के चिन्तन द्वारा मोहग्रन्थी टूट जाती है। जहाँ श्रुत का रहस्य ख्याल में आया कि अहो ! यह तो Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy