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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 3
को ही भूल गया है; इसलिए आत्मा तो मानो गुम हो गया ! ऐसा लगता है। यदि अन्तरमंथन करे तो अपने में ही अपना पता लगे ऐसा है ।
प्रश्न : भेदज्ञान करने के लिये सीधा और सरल उपाय क्या ? उत्तर : भिन्न लक्षण जानकर भिन्न जानना, (यही सीधा और सरल उपाय है)।
प्रश्न : यह किस प्रकार हो ?
उत्तर : अन्दर विचार करना चाहिए कि अन्दर जाननेवाला तत्त्व है, वह मैं हूँ और विकल्प की वृत्ति का उत्थान है, वह मेरे चैतन्य से भिन्न है।
प्रश्न : मिथ्यात्व के अभाव के लिये शुभभाव और क्रिया की आवश्यकता नहीं लगती ?
उत्तर : भाई! शुभभाव से या देह की क्रिया से मिथ्यात्व का नाश होता है - ऐसा जो मानता है, उसे तो मिथ्यात्व का पोषण होता है। मुझे शुभभाव से धर्म होगा और मैं देह की क्रिया कर सकता हूँ - ऐसा माने तो उसमें मिथ्यात्व का पोषण होता है ।
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प्रश्न : तो फिर सम्यक्त्व का मार्ग क्या ?
उत्तर : इस राग से पर चैतन्य को जानना, वह सम्यक्त्व का मार्ग है। इसके बिना शुभभाव तो अनन्त बार किये। भाई ! समझ का घर गहरा है। उसके लिये सत्समागम का बहुत अभ्यास चाहिए, बहुत पात्रता और बहुत जिज्ञासा चाहिए ।
प्रश्न : आत्मा को जानने से क्या होता है ?
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