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________________ www.vitragvani.com 32] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 यदि मरण से बचना हो.... और आत्मा की शान्ति चाहिए हो तो | चैतन्य की ही शरण करो जीव इस देह से भिन्न ज्ञानस्वरूप है, वह कभी नया नहीं हुआ परन्तु अनादि से है । वह अनादि काल से अपने अज्ञान के कारण संसार परिभ्रमण में जन्म-मरण कर रहा है; उस जन्म-मरण से छूटकर मोक्ष होने का उपाय बतलाते हुए आचार्य भगवान कहते हैं कि हे जीवों! मरण से बचना हो तो उसका उपाय वीतरागी संयम है; और वह संयम, चैतन्यमूर्ति आत्मा के भान बिना प्रगट नहीं होता; इसलिए पहले आत्मा को पहचानो; वह एक ही शरण है। संसार में जीव अशरण है। सर्वज्ञ भगवान ने जैसा चैतन्यस्वभाव कहा है, उसे ही शरणभूत जानकर उसकी आराधना करना, वह मोक्ष का उपाय है। इसलिए कहा है कि - सर्वज्ञ का धर्म सुशर्ण जाणी, आराध्य! आराध्य! प्रभाव आणी; अनाथ एकान्त सनाथ थाशे, ऐना बिना कोई न बांह्य सहाशे। (श्रीमद् राजचन्द्र) हे जीव! सर्वज्ञ भगवान ने आत्मा का जैसा स्वभाव कहा है, उसे ही शरणभूत जानकर उसकी आराधना कर... आराधना कर! इसके अतिरिक्त दूसरा कोई जगत् में शरण नहीं है। आत्मा के भान बिना एकान्त अनाथपना है, वह मिटकर चैतन्य की शरण में ही तेरा सनाथपना होगा.... इसलिए हे भाई! आत्मा की पहचान करके उसकी शरण ले। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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