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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [15 पूजा, तत्त्वविचार इत्यादि उत्कृष्ट प्रकार का शुभभाव भी आ जाता है परन्तु धर्मी का प्रयत्न तो सम्यग्दर्शनादि के लिये है, राग के लिये उसका प्रयत्न नहीं तथा वह राग को धर्म नहीं मानता। अशुभ टालकर शुभ करे, उसे भी व्यवहार से तो ठीक कहा जाता है परन्तु मनुष्यभव पाकर जिसने सम्यग्दर्शन नहीं किया और भव-भ्रमण का अन्त नहीं लाया तो उसके शुभ की क्या कीमत? उसने आत्मा का क्या हित किया? यहाँ तो आत्मा का हित हो और भव-भ्रमण का अन्त आवे, ऐसी बात है। जिससे आत्मा का भव -भ्रमण न मिटे, उसकी क्या कीमत? ___ पुण्य की सेवा करने से मोक्ष नहीं होता, परन्तु ज्ञानस्वभावी आत्मा की सेवा, (अर्थात् श्रद्धा-ज्ञान-रमणता) करने से ही मोक्ष होता है; इसलिए उसका ही उपदेश है। . (प्रवचन में से) सन्त की शिक्षा आत्मा के श्रेष्ठ भावों का श्रेष्ठ फल अवश्य आता ही है। सच्चे भाव का सच्चा फल आये बिना नहीं रहता, इसलिए दूसरे प्रसंगों को भूलकर आत्मा के भाव को जिस प्रकार प्रोत्साहन मिले, वैसे ही विचार करना। सच्चे भाव होने पर उसका सच्चा फल अवश्य आयेगा और बाहर में भी सब वातावरण अच्छा हो जायेगा। आत्मा को उलझन में नहीं रखना परन्तु उत्साह में रखना। अपने भाव सुधरने पर सब सुधर जाता है, इसलिए आत्मा को उल्लास में लाकर अपने हित के ही विचार रखना; उसमें शिथिल नहीं होना। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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