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________________ www.vitragvani.com 186] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 इसलिए उन नव तत्त्वों को छोड़कर, भूतार्थरूप भगवान आत्मा ही अकेला उपादेय है। किसी को यह शङ्का होती है कि अरे! नव तत्त्वों को छोड़ने योग्य कहा है तो क्या जीवतत्त्व को छोड़ देना है ? उसका समाधान यह है कि अरे भाई! धैर्यवान होकर समझ! अभी क्या बात चलती है? – उसका आशय ग्रहण कर! यहाँ विकल्प छुड़ाकर निर्विकल्प अनुभव कराने के लिए नव तत्त्वों को हेय कहा है, क्योंकि नव तत्त्व के लक्ष्य से विकल्प हुए बिना नहीं रहता और आत्मा का निर्विकल्प अनुभव नहीं होता। जीव के विकल्प को भी छुड़ाकर शुद्ध जीव का निर्विकल्प अनुभव कराने के लिए नव तत्त्वों में जीवतत्त्व को भी हेय कहा है। अभी यह बात सुनना भी कठिन पड़ती है तो वह समझकर अन्तर में अनुभव तो कब करेगा। नाटक समयसार में कहा है कि - बात सुनि चौंकि उठे वात ही सौं भौंकि उठे, बात सौं नरम होइ, बात ही सौं अकरी। निंदा करै साधु की, प्रशंसा करै हिंसक की, साता मानें प्रभुता, असाता मात्रै फकरी॥ मोख न सुहाइ दोष, देखै तहाँ पैठि जाइ, काल सौं डराइ जैसैं, नाहर सौं बकरी। ऐसी दुरबुद्धि भूला, झूठ के झरोखे झूली, फूली फिरै ममता, जंजीर निसौं जकरी॥३९॥ इसमें दुर्बुद्धि जीव की परिणति का वर्णन किया गया है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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