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[सम्यग्दर्शन : भाग-3
ज्ञानी को पहचानने का चिह्न
___ भेदज्ञान के लिये जिसे अन्तर में जिज्ञासा जागृत हुई है और भेदज्ञान के लिये जो अभ्यास करता है - ऐसा शिष्य पूछता है कि प्रभु! आत्मा ज्ञानस्वरूप हुआ, वह किस प्रकार पहचाना जाये? आत्मा भेदज्ञानी हुआ, वह किस प्रकार पहचाना जाये? ज्ञानी को पहचानने का चिह्न क्या? अनादि से आत्मा, विकाररूप होता हुआ अज्ञानी था, वह अज्ञान मिटकर आत्मा, ज्ञानी हुआ, वह | किस चिह्न से पहचाना जाये? - यह समझाओ।
देखो! यह ज्ञानी को पहचानने की धगश! ऐसी धगशवाले शिष्य को आचार्यदेव ज्ञानी का चिह्न बतलाते हैं
जो कर्म का परिणाम, अरु नोकर्म का परिणाम है। सो नहिं करे जो, मात्र जाणे, वो हि आत्मा ज्ञानि है॥७५॥
श्री समयसार देखो, यह ज्ञानी को पहचानने का चिह्न! ऐसे चिह्न से ज्ञानी को पहचाननेवाले को भेदज्ञान हुए बिना नहीं रहता, अर्थात् वह स्वयं भी ज्ञानी हो जाता है।
जो आत्मा, ज्ञानी हुआ, वह स्वयं को एक ज्ञायकस्वभावी ही जानता हुआ, ज्ञानभाव से ही परिणमित होता है और विकार के अथवा कर्म के कर्तारूप से वह परिणमित नहीं होता – यह ज्ञानी का चिह्न है।
यहाँ ज्ञानपरिणाम को ही ज्ञानी का चिह्न कहा है; ज्ञानी का चिह्न
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