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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-3] [139 बात कही है। जीव की वर्तमान पर्याय की योग्यता से ही पुण्य होता है। पुण्य के असंख्य प्रकार हैं, उसमें भगवान के दर्शन के समय अमुक प्रकार का शुभभाव होता है; शास्त्र श्रवण के समय अमुक जाति का शुभभाव होता है और दया-दान इत्यादि में अमुक प्रकार का शुभभाव होता है - ऐसा क्यों? क्या निमित्त के कारण वैसे प्रकार पड़ते हैं ? तो कहते हैं कि नहीं; उस-उस समय की जीव की विकारी होने की योग्यता ही उस प्रकार की है। इतना स्वीकार करनेवाले को तो अभी पर्यायदृष्टि से अर्थात् व्यवहारदृष्टि से अथवा अभूतार्थदृष्टि से जीव को तथा पुण्यादि तत्त्व को स्वीकार किया कहा जाता है; परमार्थ में तो यह नव तत्त्व के विकल्प भी नहीं हैं। मिथ्यात्व तथा हिंसादि भाव, वह पापतत्त्व है, उसमें भी पापरूप होने योग्य और पाप करनेवाला - यह दोनों जीव और अजीव हैं अर्थात् पापभाव होता है, उसमें जीव की योग्यता है और अजीव निमित्त है। पुण्य और पाप दोनों विकार हैं, इसलिए 'विकारी होने की योग्यता' में ही पुण्य और पाप दोनों ले लिये हैं। निमित्त के बिना वे नहीं होते और निमित्त के कारण भी नहीं होते। जीव की योग्यता से ही होते हैं और अजीव निमित्त हैं । 'योग्यता' कहने पर उसमें यह सभी न्याय आ जाते हैं। ___ यद्यपि सम्यग्दृष्टि जीव, विकार को अपना स्वरूप नहीं मानते; फिर भी उनको विकार होता है, वहाँ चारित्रमोहनीय कर्म के उदय के कारण सम्यग्दृष्टि को विकार होता है - ऐसा नहीं है परन्तु उस भूमिका में रहनेवाले जीव के परिणाम में ही पुण्य अथवा पाप होने की उस प्रकार की योग्यता है, उसमें अजीव कर्म तो निमित्तमात्र है। मिथ्यात्व के पाप में, मिथ्यात्वकर्म का उदय निमित्त है परन्तु Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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