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________________ www.vitragvani.com 120] [सम्यग्दर्शन : भाग-3 के लिए निवृत्ति लेकर सत्समागम भी नहीं करते। इन्हें मनुष्यभव प्राप्त करने का क्या लाभ है ? अरे भगवान ! अनन्त काल में सत् सुनने का और समझने का अवसर आया है; इसलिए आत्मा की दरकार करके समझ रे समझ! अभी नहीं, किन्तु बाद में करूँगा' - ऐसा वायदा करने में रूकेगा तो सत् समझने का अवकाश चला जाएगा और फिर अनन्त काल में भी ऐसा अवसर प्राप्त होना कठिन है। सन्तों का ऐसा योग प्राप्त होने पर भी यदि उनके सत्समागम में सत् की प्राप्ति का मार्ग नहीं प्राप्त किया तो तुझे क्या लाभ? अरे! लक्ष्मी तिलक करने आवे, तब मुँह धोने नहीं जाया जाता। इसी प्रकार यह सत् समझने का और चैतन्यलक्ष्मी प्राप्त करने का अवसर आया है; अपूर्व कल्याण प्राप्त करने का अवसर आया है। इस अवसर में बाद में करूँगा, बाद में करूँगा' - ऐसा नहीं होता। यदि इस काल में दरकार करके सत् को नहीं समझेगा तो पुनः ऐसा अवसर कब प्राप्त होगा? इसलिए प्रथम, आत्मा का पिपासु होकर तत्त्वनिर्णय का उद्यम कर! ____ नव तत्त्वों में से जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव-संवर, निर्जरा और बन्ध - इन आठ तत्त्वों का वर्णन हो गया है। ___ अब नौंवाँ, मोक्षतत्त्व है। अनन्त ज्ञान और आनन्दमय आत्मा की पूर्ण शुद्धदशा प्रगट होना मोक्षतत्त्व है। जो ऐसे मोक्षतत्त्व को पहचानता है, वह सर्वज्ञदेव को पहचानता है; इसलिए वह कुदेवादि को नहीं मानता। जो कुदेवादि को मानता है, उसने मोक्षतत्त्व को नहीं जाना है। मोक्ष तो आत्मा की पूर्ण निर्मल रागरहित दशा है। उस मोक्षतत्त्व को जानने पर अरिहन्त और सिद्ध भगवान की भी प्रतीति होती है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007770
Book TitleSamyag Darshan Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages239
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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