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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 2
सम्यक्त्व के निमित्त
उपदेशक ज्ञानी का आत्मा, अन्तरङ्ग निमित्त और ज्ञानी की वाणी, अर्थात् जिनसूत्र, बहिरङ्ग निमित्त
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सम्यग्दर्शन प्रगट करनेवाले जीव को देशनालब्धि अवश्य होती है और वह देशनालब्धि, सम्यक्त्वरूप परिणमित साक्षात ज्ञानी के निमित्त से ही प्राप्त होती है । अकेले शास्त्र से या किसी मिथ्यादृष्टि के निमित्त से देशनालब्धि प्राप्त नहीं होती । जो स्वयं मिथ्यादृष्टि है ऐसे जीव को अपनी देशनालब्धि के निमित्तरूप से स्वीकार करनेवाले जीव में तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करने की पात्रता भी नहीं होती । सम्यक्त्व की पात्रतावाला जीव, सामने भी सम्यग्दृष्टि के भाव को पहचानकर उसे अपना अन्तरङ्ग निमित्त बनाता है। इस सम्बन्ध में आचार्य कुन्दकुन्ददेव द्वारा रचित नियमसार परमागम की 53 गाथा में विशेष स्पष्टीकरण किया गया है। मूल गाथा इस प्रकार है सम्मत्तस्स णिमित्तं जिणसुत्तं तस्स जाणया पुरिसा । अन्तरहेऊ भणिदा दंसणमोहस्स खयपहुदी ॥ जिनसूत्र समकितहेतु है, अरु सूत्रज्ञाता पुरुष भी । वह जान अन्तर्हेतु जिसके दर्शमोह क्षयादि हो ॥ अर्थात् सम्यक्त्व का निमित्त जिनसूत्र है; जिनसूत्र के जाननेवाले पुरुषों को (सम्यक्त्व के) अन्तरङ्ग हेतु कहे हैं, क्योंकि उनको दर्शनमोह के क्षयादिक हैं ।
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निज शुद्ध कारणपरमात्मा की श्रद्धा करके सम्यग्दर्शन प्रगट करनेवाले जीव को निमित्त कैसे होते हैं ? वह यहाँ बताते हैं ।
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