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________________ www.vitragvani.com 72] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 धन्य जीवन अहो! जो चैतन्यलक्ष्यी जीवन है, वही प्रशंसनीय है... चैतन्य के लक्ष्यरहित जीवन तो मृतक समान है। चैतन्य का भान करके जो उसके अनुभव में स्थिर हुआ, उसकी धन्यता की तो बात ही क्या? परन्तु जगत् जञ्जाल की चिन्ता छोड़कर, जिसके अन्तरङ्ग में आत्मा के हित की चिन्ता जागृत हुई है, | उसका जीवन भी प्रशंसनीय है। यह जीव, अनादि काल से संसार में परिभ्रमण कर रहा है। अनादि से संसार में परिभ्रमण करते हुए इसने आत्मा को विस्मृत करके, शरीरादि पर की ही चिन्ता की है किन्तु आत्मा का स्वभाव क्या है और उसका संसार परिभ्रमण कैसे मिटे? - इसकी चिन्ता कभी नहीं की है; इसलिए आचार्य भगवान कहते हैं कि अहो! जो चैतन्यस्वरूप आत्मा में स्थिर हुए हैं, उनकी तो क्या बात ! परन्तु जिन्होंने आत्मा की चिन्तामात्र का परिग्रह किया है, उनका जीवन भी प्रशंसनीय है। अस्तां तत्र स्थितो यस्तु चिंतामात्रपरिग्रहः। तस्यात्र जीवितं श्लाध्यं, देवैरपि स पूज्यते॥ जो पुरुष इस शुद्धात्मा को पहचान कर, उसके ध्यान में स्थिर रहता है, उसकी बात तो दूर रहो, परन्तु जो पुरुष शुद्धात्मा की चिन्ता का परिग्रह करनेवाला है, उसका जीवन भी इस संसार में प्रशंसनीय है तथा वह देवों द्वारा भी पूज्य है। इसलिए भव्य जीवों को सदा शद्धात्मा का चिन्तन करना चाहिए। श्री पद्मनन्दि मुनिराज, महान् दिगम्बर सन्त मुनि थे। वे जङ्गल Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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