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________________ www.vitragvani.com 641 [सम्यग्दर्शन : भाग-2 ज्ञानज्योति की झनझनाहट जीव, अज्ञानभाव से स्वर्ग में भी अनन्त बार गया और नरक में भी अनन्त बार गया; पुण्य-पाप को आत्मा के साथ अभेदभाव की मान्यता से चारों गतियों में अनन्त काल से परिभ्रमण किया परन्तु जहाँ यह ज्ञानज्योति झनझनाहट करती हुई जागृत हुई और चार गति के कारण को मूल में से उखाड़ती हुई प्रगट हुई, वहाँ परिभ्रमण मिट गया और अंशत: मुक्ति की पर्याय प्रगट हुई। सच्ची समझ ने अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश किया है। मेरा आत्मा ज्ञाता-दृष्टा वीतरागी स्वभाव ही है – ऐसे ज्ञान में स्वीकारती ज्ञानज्योति भले प्रकार सुसज्जित हुई है। __जिस प्रकार तलवार को सुसज्जित करते हैं; उसी प्रकार ज्ञानज्योति भले प्रकार सुसज्जित हुई है, अर्थात् तैयार हुई है। ऐसी तैयार हुई है कि जो प्रगट होकर केवलज्ञान लेकर ही रहेगी। केवलज्ञान लेने में बीच में कोई विघ्न आनेवाला ही नहीं है। ज्ञानज्योति प्रगटी सो प्रगटी; अब अखण्ड धारा से केवलज्ञान तक पहुँच ही जानेवाली है। ज्ञानज्योति ऐसी सुसज्जित हुई है कि ज्ञानआनन्द करती हुई केवलज्ञान समुद्र में मिल जानेवाली है। ऐसा उसका फैलाव, उसे कोई आवृत नहीं कर सकता है, रोक नहीं सकता है। चैतन्य की ज्ञानज्योति जागृत हुई, उसे रोकने कोआवृत करने को समर्थ इस जगत में कोई पदार्थ नहीं है। किसी पदार्थ का ऐसा गुण नहीं या किसी पदार्थ की ऐसी पर्याय नहीं। जाननेवाला जागे, उसे आवरण करने के लिए तीन काल-तीन लोक में किसी की शक्ति नहीं है। इसलिए आचार्यदेव कहते हैं कि - Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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