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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [63 परवस्तु के विचार छूट जाना, वह भला ध्यान है और आत्मा की महिमा भूलकर पर के विचार में एकाग्र होना, वह खोटा ध्यान है। आत्मा को पहचानकर एकाग्र हो, उतनी शान्ति प्रगट होती है। सत् समागम से आत्मा की पहचान और ध्यान करने का सतत् प्रयत्न करे तो इस काल में भी आत्मा का ध्यान होता है। ऐसा ध्यान, वह अभेदभक्ति है और उस अभेदभक्ति से ही मुक्ति होती है। ___ श्री भरत महाराजा के मुख से अभेदभक्ति की ऐसी सुन्दर चर्चा सुनकर वे रानियाँ अत्यन्त प्रसन्न हुईं और अन्तर में उल्लासपूर्वक उस अभेदभक्ति का प्रयत्न करने लगी। अपूर्व चीज : आत्मा की समझ देखो भाई! आत्मस्वभाव की समझ करना ही अपूर्व चीज है। अनन्त काल में सब किया है परन्तु अपना आत्मस्वभाव क्या है, वह समझा नहीं। इस जीवन में वही करने योग्य है, उसके बिना जीवन में जो कुछ करे, वह सब व्यर्थ है और संसार का कारण है। अनन्त काल से आत्मा की समझ नहीं की; इसलिए उसके लिए अनन्त दरकार और रुचि चाहिए। छोटे से सिद्ध सम्यग्दर्शन प्रगट होने पर आत्मा का अनुभव होता है। जैसा सिद्ध भगवान को होता है, वैसा चौथे गुणस्थान में समकिती जीव को अनुभव होता है; सिद्ध को पूर्ण अनुभव होता है और समकिती को आंशिक अनुभव होता है परन्तु जाति तो वही है। समकिती, आनन्दसागर के अमृत का अपूर्व स्वाद ले रहा है, आनन्द के झरने | में मौज कर रहा है। (समयसार बन्ध अधिकार के प्रवचनों में से) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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