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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
| वंदित्तु सव्वसिद्धे.... . सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार करने की विधि और उसका फल
श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव ने वंदित्तु सव्वसिद्धे.... ऐसा कहकर जब सिद्ध भगवन्तों को नमस्कार किया, तब सिद्धों की जो संख्या थी, उसकी अपेक्षा अभी लाखों सिद्धों की संख्या बढ़ गयी है... और वे सदा ही वृद्धिंगत ही रहेंगे। जैसे जगत में सिद्ध निरन्तर वृद्धिंगत ही है, उसी प्रकार आत्मा में सिद्धों की स्थापना करनेवाले साधक की परिणति भी निरन्तर वृद्धिंगत ही है.... उसकी परिणति में वृद्धि होते-होते वह भी सिद्धों की बस्ती में मिल जायेगा।
वंदित्तु सव्वसिद्धे.... ऐसा कहकर श्री कुन्दकुन्दाचार्यदेव, समयसार के शुरुआत में माङ्गलिकरूप से सर्व सिद्धभगवन्तों को नमस्कार करते हैं... जिन्हें पूर्ण ज्ञान और आनन्द खिल गया है
और रागादि का अभाव हुआ है – ऐसे सर्व सिद्धभगवन्तों को नमस्कार हो! ___ सिद्ध को नमस्कार करनेवाला जीव कैसा होता है ? नमस्कार करनेवाले को स्वयं को तो पूर्ण ज्ञान खिला नहीं और अपूर्ण ज्ञान है, क्योंकि पूर्ण ज्ञान खिल जाने के पश्चात् किसी को नमस्कार करना नहीं रहता। अपने को वर्तमान में अपूर्ण ज्ञान होने पर भी पूर्ण ज्ञानी को नमस्कार करते हैं तो वह किसके सन्मुख रहकर नमस्कार करेगा? अपूर्ण ज्ञान के सन्मुख रहकर पूर्ण ज्ञान का स्वीकार नहीं किया जा सकता। जहाँ पूर्ण ज्ञान प्रगट होने की ताकत भरी हो,
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