SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com 26] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 आत्मा में चैतन्य खजाना है। अन्दर में आनन्द और शान्ति है परन्तु जिस प्रकार कस्तूरी मृग अपनी नाभि में स्थित कस्तूरी को भूलकर बाह्य में सुगन्ध मानता है; इसी प्रकार अज्ञानी जीव, बाहर में सुख खोजता है। अन्दर में सुख है - ऐसे आत्मा का ज्ञान हो तो सद्बोधरूपी चन्द्रमा का उदय होता है और फिर जिस प्रकार दूज में से पूर्णिमा होती है, उसी प्रकार उस सम्यग्ज्ञान में से केवलज्ञान होता है। यह आत्मा, सुख का भण्डार है; इसमें से ही सुख प्रगट होता है। जिस प्रकार कच्चे चने को सेकने पर उसमें से मिठास प्रगट होती है, वह मिठास बाहर से प्रगट नहीं होती, अपितु चने में ही विद्यमान थी, वह प्रगट हुई है। इसी प्रकार सच्ची पहचान करने से आत्मा में सुख प्रगट होता है, वह बाहर से नहीं आता; अपितु अन्दर भरा है, उसी में से आता है। इस मनुष्यभव में आत्मा का सच्चा ज्ञान करना ही कर्तव्य है। यदि मनुष्य अवतार प्राप्त करके भी आत्मा की पहिचान नहीं की तो इस अवतार की कोई विशेषता नहीं है। जिस प्रकार कच्चा चना कड़वा लगता है और उसे बो दिया जाए तो उगता है परन्तु उसे सेक दें तो मिठास आती है और वह फिर से उगता नहीं है; इसी प्रकार आत्मा, अज्ञानभाव से दु:खी है और नये-नये भव धारण कर रहा है परन्तु आत्मा की सच्ची पहचान करने से उसे सुख प्रगट होता है और फिर से भव धारण नहीं करना पड़ता। यह आत्मा, आबाल-गोपाल सबको ख्याल में आ सके - ऐसा है। आत्मा, मोक्षसुख का देनेवाला है - ऐसे आत्मा को अनुभव Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy