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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
भेदविज्ञान की महिमा
एकमात्र भेदविज्ञान के अतिरिक्त जीव अनन्त काल में सब कर चुका है परन्तु भेदज्ञान एक सेकेण्डमात्र भी प्रगट नहीं किया, एक सेकेण्डमात्र का भेदविज्ञान, अनन्त जन्म-मरण का नाश करनेवाला है। जैसे पर्वत पर बिजली गिरे और उसके सैकड़ों टुकड़े हो जायें, वे फिर से रेण देने से जुड़ते नहीं हैं; इसी प्रकार एक बार भी जीव यदि भेदविज्ञान प्रगट करे तो उसकी मुक्ति हो और उसे फिर से अवतार नहीं रहे; इसलिए यह भेदविज्ञान निरन्तर भाने योग्य है।
भेदविज्ञान प्रगट करने की तैयारीवाले जीव को देशनालब्धि अवश्य होती है। सत्समागम के बिना मात्र शास्त्र के अभ्यास से वह देशनालब्धि नहीं हो सकती है। किसी आत्मानुभवी धर्मात्मा से धर्मदेशना का सीधा श्रवण किये बिना कोई भी जीव शास्त्र पढ़कर भेदविज्ञान प्रगट नहीं कर सकता; इसलिए जिस आत्मार्थी को अति महिमावन्त भेदविज्ञान प्रगट करके इन संसार दुःखों से परिमुक्त होना हो, उसे सत्समागम में उपदेश का श्रवण करके तत्त्व का निर्णय करना चाहिए। भेदविज्ञान ही इस जगत में सारभूत है। भेदविज्ञान बिना जो कुछ है, वह सब असार है; इसलिए आत्मार्थी जीवों को प्रतिपल इस भेदविज्ञान की भावना करना योग्य है।
(भेदविज्ञानसार में से)
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