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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [23 की अग्नि की भट्टी में डाल दे और उसे जो दुःख होता है, उसकी अपेक्षा अनन्तगुणा दुःख पहले नरक में है और पहले नरक से अधिक दूसरे में, तीसरे आदि सातों नरकों में क्रमश: बढ़ता हुआ अनन्तगुणा दुःख होता है। ऐसे अनन्त दु:ख की प्रतिकूलता की वेदना में पड़ा हुआ, महा कठोर पाप करके वहाँ गया हुआ, तीव्र वेदना के समूह में पड़ा होने पर भी किसी जीव को ऐसा विचार आता है कि अरे रे! ऐसी वेदना ! ऐसी पीड़ा ! ऐसा विचार करके स्वसन्मुखता होने से सम्यग्दर्शन हो जाता है। वहाँ सत्समागम नहीं होने पर भी पूर्व में एक बार सत्समागम किया था, सत् का श्रवण किया था और वर्तमान में सम्यविचार के बल से सातवें नरक की महापीड़ा में पड़ा होने पर भी पीड़ा का लक्ष्य विस्मृत होकर सम्यग्दर्शन होता है, आत्मा का वेदन होता है। सातवें नरक में रहे हुए सम्यग्दर्शन प्राप्त जीव को नरक की पीड़ा असर नहीं कर सकती, क्योंकि उसे भान है कि मेरे ज्ञानस्वरूप चैतन्य को कोई परपदार्थ असर नहीं कर सकता। ऐसी अनन्त वेदना में पड़ा हुआ भी आत्मा का अनुभव प्राप्त किया है तो सातवें नरक जितनी पीड़ा तो यहाँ नहीं है न! मनुष्यपना प्राप्त करके रोना क्या रोया करता है ? अब सत्समागम से आत्मा की पहचान करके आत्मानुभव कर। आत्मानुभव का ऐसा माहात्म्य है कि परीषह आने पर भी डिगे नहीं और दो घड़ी, स्वरूप में लीन हो तो केवलज्ञान प्रगट करता है, जीवन्मुक्त दशा होती है और सिद्धदशा होती है तो फिर मिथ्यात्व का अभाव करके सम्यग्दर्शन प्राप्त करना तो सुलभ ही है। (पूज्य बेनश्री बेन द्वारा लिखित समयसार प्रवचन, भाग-३ में से) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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