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________________ सम्यग्दर्शन : भाग-2 ] www.vitragvani.com ज्ञानी का उपदेश आत्मा की पहचान करने का है मानव जीवन में आत्मा की समझ करनेयोग्य है [3 ज्ञानी का उपदेश आत्मा की पहचान करने का है । सत्समागम में उसकी पहचान करना चाहिए । अनन्त - अनन्त काल से यह आत्मा है, तो वह कैसा है ? उसे पहचानने की दरकार करनी चाहिए। मनुष्यदेह अनन्त काल में मिलती है, उसमें आत्मा को समझने की गरज करनी चाहिए, सत्समागम से बारम्बार उसका परिचय करके समझना चाहिए। उसकी पहचान करना ही मनुष्यदेह में आने का वास्तविक फल है। वरना पुण्य करके स्वर्ग में जाये अथवा पाप करके नरक में जाये, वह कोई नया नहीं है । अहो! ऐसी मनुष्यदेह प्राप्त हुई और यदि आत्मा को न जाने तो अवतार व्यर्थ है। जैसे सर्वव्यापी आकाश को हाथ में समाहित करना कठिन है; उसी प्रकार आत्मस्वभाव का वर्णन, वाणी द्वारा करना कठिन है, तथापि जो जीव दरकार करके उसे समझना चाहता है, उस जीव को सत्समागम से ज्ञान में समझ में आता है। अनन्त जीव उसे समझकर मुक्त हुए हैं, वर्तमान में भी आत्मा को समझनेवाले हैं, और भविष्य में भी अनन्त होंगे। पुण्य और पाप तो पूरी दुनिया करती है परन्तु आत्मा की समझ करनेवाले कोई विरले ही होते हैं। पर में सुख माने और सुख के लिये पर की दासता माने, वह तो भिखारी है, कोई लाखों रुपये माँगे, कोई हजार माँगे, कोई सौ माँगे; अधिक माँगे, वह बड़ा भिखारी है और थोड़ा माँगे, वह छोटा भिखारी है; और ऐसा समझे कि मैं आत्मा हूँ, मुझे कुछ नहीं Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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