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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [169 ___ आत्मार्थी जीव के लक्षण, श्रवण करते ही ज्ञात हो जाते हैं। आत्मा के आनन्द की बात कान में पड़ते ही आत्मार्थी का उत्साह छिपा नहीं रहता। जिस प्रकार पुत्र के लक्षण पालने से ही दिखने लगते हैं; उसी प्रकार आत्मार्थी के लक्षण आत्मा का श्रवण करते ही ज्ञात हो जाते हैं। देखो, यहाँ सुनकर निर्णय करने पर जोर है। क्या निर्णय करना? मेरा आत्मा विशुद्ध ज्ञान-आनन्दस्वरूप है - ऐसा निर्णय करना। ऐसा दृढ़ निर्णय करना कि वीर्य का वेग उस ओर ढले बिना नहीं रहे। ऐसा निर्णय करने के पश्चात् बारम्बार उस ओर के प्रयत्न से अनुभव होता है; निर्णय के बिना पुरुषार्थ की दिशा नहीं खुलती है। देखो, भाई! यह बात स्वयं अपने हित के लिये समझने की है। स्वयं समझकर अपना हित कर लेना, दूसरे जीव क्या करते हैं? - यह देखने के लिये रुकना मत ! यह वस्तु ही ऐसी है कि जगत् के सभी जीव इसे प्राप्त नहीं कर सकते। कोई विरले ही इसे प्राप्त करते हैं। इसीलिए समयसार, गाथा 205 में आचार्यदेव कहते हैं - रे ज्ञानगुण से रहित बहुजन, पद नहीं यह पा सके। तू कर ग्रहण पद नियत ये, जो कर्ममोक्षेच्छा तुझे॥ ज्ञानगुण से रहित बहुत लोग इस ज्ञानस्वरूप पद को प्राप्त नहीं करते। इसलिए हे भव्य ! यदि तू कर्म से सर्वथा मुक्त होना चाहता है तो नियत एकरूप ऐसे इस ज्ञानस्वभाव को ग्रहण कर। ज्ञानस्वभाव का ही अवलम्बन कर। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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