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________________ www.vitragvani.com 140] [ सम्यग्दर्शन : भाग-2 सोलहकारणभावना ज्ञानी को ही होती है परन्तु ज्ञानी उस भाव को आदरणीय नहीं मानते; ज्ञानी तो जानते हैं कि शुद्धरत्नत्रय द्वारा निज कारणपरमात्मा को आराधना, वही सिद्धि का उपाय है। परमात्मदशा कहाँ से प्रगट होती है ? अन्दर में प्रत्येक आत्मा परमात्मशक्ति से परिपूर्ण है, उसमें से ही परमात्मदशा प्रगट होती है। जैसे छोटी पीपर को घिसने से चौंसठ पहरी चरपराहट प्रगट होती है, वह कहाँ से प्रगट होती है ? खरल में से प्रगट नहीं होती परन्तु उसमें जो चौंसठ पहरी चरपराहट शक्तिरूप से थी, वही प्रगट हुई है; बाहर से नहीं आयी तथा एक से लेकर त्रेसठ पहरी तक की चरपराहट में से भी चौंसठ पहरी चरपराहट नहीं आयी है। उस अपूर्ण चरपराहट का तो अभाव होकर पीपर की सामर्थ्य में से ही पूर्ण चरपराहट आयी है। चूहे की लीदी भी छोटी पीपर जैसी लगती है परन्तु उसे घिसने पर उसमें से चरपराहट प्रगट नहीं होती, क्योंकि उसमें वैसा स्वभाव नहीं है। छोटी पीपर में स्वभाव है, उसमें से ही चरपराहट प्रगट होती है, वह किसी संयोग के कारण नहीं है । इसी प्रकार आत्मा परिपूर्ण परमात्मशक्ति से भरपूर है, उसकी श्रद्धा-ज्ञान एकाग्रता द्वारा उसमें से परमात्मदशा प्रगट होती है परन्तु शरीरादि को घिस डालने से परमात्मदशा प्रगट नहीं होती, क्योंकि उनमें वैसा स्वभाव नहीं है; तथा अपूर्णदशा में से भी पूर्णदशा नहीं आती । ध्रुवस्वभाव त्रिकाल भरा है, उसके ही अवलम्बन से अपूर्णदशा का व्यय होकर पूर्ण परमात्मदशा प्रगट हो जाती है। 1 इस प्रकार शुद्ध आत्मा की आराधना ही सिद्धि का उपाय है, इस उपाय से ही भूतकाल में अनन्त सिद्ध हुए, वर्तमान में इस Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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