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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2 ] उपाय से ही सिद्ध होते हैं और भविष्य में इस उपाय से ही सिद्ध होंगे; सिद्धि का दूसरा उपाय नहीं... नहीं है। [ 141 मेरी परिपूर्ण परमात्मदशा मेरे आत्मा में से ही प्रगट होनेवाली है - ऐसी पहचान बिना धर्म नहीं होता । वस्त्र लेने जाये या सब्जी इत्यादि लेने जाये तथा सोना या हीरा-माणिक लेने जाये तो वहाँ उसे पहले पहचानता है। इसी प्रकार धर्म करने के लिये पहले पहचानना तो चाहिए न कि धर्म कहाँ से निकलता है ? सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, और सम्यक्चारित्र, इन तीन चैतन्य रत्न द्वारा मोक्ष की प्राप्ति होती है। कारणपरमात्मा में दृष्टि, उसका ज्ञान और उसमें एकाग्रता करके जो जीव, रत्नत्रय की भक्ति करता है, वह निर्वाण का भक्त, अर्थात् मोक्ष का उपासक है और वह परमात्मदशा को पाता है। ऐसे उपाय से अनन्त सिद्ध भगवन्त मुक्त हुए, उन्हें पहचानकर उनकी भक्ति करना, निर्वाण के परम्परा हेतुभूत व्यवहारभक्ति है, परन्तु अन्दर में निज परमात्मस्वभाव की आराधनारूप निश्चयभक्ति वर्तती है, तब उसे व्यवहारभक्ति कहते हैं । जो आसन्न भव्य जीव अपने स्वभाव में अन्तर्मुख होकर शुद्धरत्नत्रय प्रगट करता है, उसे व्यवहारभक्ति है और वह भक्ति, मुक्ति का कारण है । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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