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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [137 कारणपरमात्मा को आराध-आराध कर अनन्त तीर्थंकर, केवली भगवन्त तथा गणधर आदि मुनिवर, सिद्ध हो गये हैं। महाविदेहक्षेत्र में मोक्ष का मार्ग कभी बन्द नहीं होता, वहाँ सदा ही जीवों को मोक्ष हुआ ही करता है। किस प्रकार? शुद्धरत्नत्रय द्वारा कारणपरमात्मा की आराधना से। कोई जीव, कुलपरम्परा इत्यादि का आग्रह करके व्यवहार के आश्रय से धर्म मानते हों तो यहाँ कहते हैं कि अरे भाई! तेरी कुल परम्परा सच्ची या अनन्त सिद्ध भगवन्त हो गये, उनकी परम्परा सच्ची? जो अनन्त पुराण पुरुष, मोक्ष को प्राप्त हुए, वे कोई व्यवहार के या भेदरत्नत्रय के आश्रय से मोक्ष को प्राप्त नहीं हुए परन्तु वे तो अभेदरत्नत्रय द्वारा शुद्ध आत्मा को ही आराधकर मुक्ति को प्राप्त हुए हैं; इसलिए तीर्थंकरों के कुल में तो यही एक मुक्तिमार्ग है; अत: तू दूसरा उपाय कहाँ से लाया? अनन्त सन्त, सिद्धि को प्राप्त हुए – वे किस प्रकार प्राप्त हुए? शुद्ध कारणपरमात्मा को अभेदरत्नत्रयपरिणति से आराधकर वे सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। तीनों काल यह एक ही सिद्धि का उपाय है-'एक होय तीन काल में परमारथ का पंथ।' आत्मा की आराधना, आत्मा की प्रसन्नता, आत्मा की कृपा, आत्मा की भक्ति, आत्मा की सिद्धि – वह शुद्धरत्नत्रय द्वारा ही होती है; रागादि द्वारा नहीं होती। शुद्धरत्नत्रय परिणति से अन्तरस्वरूप में ढल गये-झुक गये-नम गये-प्रणम गये, इसी विधि से सब सिद्धभगवन्त सिद्धि को प्राप्त हुए हैं। अन्दर में रागरहित शुद्धरत्नत्रय द्वारा आत्मस्वभाव की आराधना करना, वह एक ही तीनों काल में मोक्षमार्ग है और Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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