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________________ www.vitragvani.com 136] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 __ अभी श्री सीमन्धर भगवान इत्यादि तीर्थङ्कर और लाखों केवल -ज्ञानी भगवन्त, महाविदेहक्षेत्र में विराज रहे हैं; अनन्त सिद्ध भगवन्त लोक के शिखर पर विराज रहे हैं; वे अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त वीर्य, अनन्त सुख इत्यादि गुणोंसहित हैं। उन्हें पहचानकर, उनके बहुमान इत्यादि का भाव, वह व्यवहार से निर्वाणभक्ति है। देखो, आज इस आश्रम के माङ्गलिक में आत्मा की भक्ति आयी तथा सिद्धभगवान की भक्ति भी आयी। यहाँ व्यवहार की प्रधानता से सिद्धभक्ति का कथन है, परन्तु सिद्धभगवान की भक्ति को व्यवहार से निर्वाणभक्ति कही, इससे ऐसा नहीं समझना कि वह मोक्षमार्ग है । मोक्षमार्ग तो स्वभाव के आश्रय से जो निश्चयरत्नत्रय प्रगटे, वही है। बीच में राग आवे, वह वास्तव में मोक्षमार्ग नहीं है। धर्मी को शुद्धस्वभाव का भान है और राग भी होता है परन्तु वहाँ वह समझता है कि यह राग मेरा स्वभाव नहीं है और इसके आश्रय से मेरा मोक्षमार्ग नहीं है, तथापि राग के समय सिद्ध भगवान के प्रति भक्ति का उल्लास भी आये बिना नहीं रहता। इस प्रकार निश्चय-व्यवहार की सन्धि है। सिद्ध भगवान किस प्रकार सिद्धि को प्राप्त हुए? यहाँ सिद्धभगवान की भक्ति की बात करते हुए, वे सिद्ध -भगवन्त किस प्रकार सिद्धि को प्राप्त हुए? - यह पहचान भी कराते हैं। पुराण पुरुष समस्त कर्मक्षय के उपाय के हेतुभूत कारणपरमात्मा को अभेद-अनुपचार-रत्नत्रयपरिणति से सम्यक्प से आराध कर सिद्ध हुए... अनादि काल से इस प्रकार से जीव, सिद्ध होते ही आते हैं। यही पहले शुद्धरत्नत्रय द्वारा अपने Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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