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सम्यग्दर्शन : भाग-2 ]
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परमात्म भावना
सौराष्ट्र के तीर्थराज गिरनारजी पर श्री नेमिनाथ प्रभु के तीन कल्याणक हुए हैं। गिरनारजी के सहस्राव वन में भगवान का दीक्षा कल्याणक हुआ, गिरनार पर ही भगवान, केवलज्ञान को प्राप्त हुए और उस गिरनार की पाँचवीं टोंक से भगवान ने सिद्धि गमन किया। इस प्रकार भगवान के तीन कल्याणकों से पावन हुए श्री गिरनारजी तीर्थ की यात्रा के लिये वीर संवत् २४६६ में पूज्य गुरुदेव श्री संघसहित पधारे थे। उस समय उस गिरनारजी की पाँचवीं टोंक में-निर्वाणभूमि स्थान में डेढ़ घण्टे तक भक्ति चली थी। उसमें पूज्य गुरुदेवश्री ने अध्यात्मभावना में मस्त बनकर 'मैं एक शुद्ध सदा अरूपी... ज्ञानदर्शनमय अरे' - इत्यादि धुन गवायी थी और भक्त उसे झेलते थे । अहो ! उस गिरनार की टोंच पर जम गयी धुन और उस समय का शान्त आध्यात्मिक वातावरण... उसके स्मरण अभी भी भक्तजनों के हृदय में गूँज रहे हैं।
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बारह वर्ष बाद एक दिन सबेरे इस प्रसंग को याद करके इस गाथा का बारम्बार रटन करते हुए पूज्य गुरुदेवश्री ने कहा था कि यह गाथा गिरनार के शिखर पर बुलवायी थी । जहाँ से श्री नेमिनाथ प्रभु, परमात्मदशा को प्राप्त हुए, वहाँ ही इस परमात्मभावना की धुन गवायी थी। देखो तो सही... परमात्मभावना...
मैं एक शुद्ध सदा अरूपी ज्ञानदर्शनमय अरे कुछ अन्य हो मेरा जरा परमाणुमात्र नहीं अरे ॥ परमात्मा में परमाणु नहीं;
परमाणु में परमात्मा नहीं ।
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