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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 2
उपाय हम लेंगे, वह उपाय कोई हाथी नहीं, ज्वाजल्यमान अग्नि नहीं । व्यर्थ ही जीव को भटका दिया है। जीव को पुरुषार्थ करना नहीं, और उसके कारण बहाने निकालना है। यह अपना दोष समझना। समता से वैराग्य की बातें सुनना, विचारना, बाह्य बातें जैसे बने वैसे छोड़ देना। जीव तरने का अभिलाषी हो और सद्गुरु की आज्ञा में वर्ते तो सभी वासनायें पलायमान हो जाती हैं । (पृष्ठ ४२६-४२७) जीवों को ऐसा भाव रहता है कि सम्यक्त्व अनायास आता होगा, परन्तु वह तो प्रयास / पुरुषार्थ किये बिना प्राप्त नहीं होता । (पृष्ठ ४९२) सत्पुरुष की बात पुरुषार्थ को मन्द करने की नहीं होती; पुरुषार्थ को उत्तेजन देने की होती है। (पृष्ठ ४२८) पुरुषार्थ करे तो कर्म से मुक्त हो । अनन्त काल के कर्म हों और यदि यथार्थ पुरुषार्थ करे तो कर्म ऐसा नहीं कहते हैं कि मैं नहीं जाऊँगा। दो घड़ी में अनन्त कर्म नाश को प्राप्त होते हैं । आत्मा की पहचान होवे तो कर्म नाश होते हैं। (पृष्ठ ४१७) (यहाँ दिये गये उद्धरण श्रीमद् राजचन्द्र गुजराती द्वितीय आवृत्ति के हैं । )
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