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________________ www.vitragvani.com 112] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 जिस प्रकार कोई मतिहीन और विवेकरहित मनुष्य, हाथी को विविध अलङ्कारों से शृङ्गार कराकर, उससे लकड़ियाँ उठवाता है तथा मूर्ख मनुष्य, सोने के थाल में धूल भरता है और मूढ़ जीव सुधारस को पीने के बदले, उससे पैर धोता है; उसी प्रकार अज्ञानी जीव यह दुर्लभ मनुष्यदेह प्राप्त करके व्यर्थ गँवाता है। किसी मनुष्य पर राजा प्रसन्न हो गया और उसने एक सोने के आभूषण से शृङ्गारित हाथी पुरस्कार में दे दिया, परन्तु उस मूर्ख जीव ने तो हाथी का उपयोग लकड़ियों के गठ्ठर उठाने में किया। वह स्वयं हाथी पर तो नहीं बैठता, किन्तु उससे गठ्ठर उठवाता है। इसी प्रकार मूढ़ अज्ञानी जीव भी यह दुर्लभ मनुष्यदेह पाकर आत्मार्थ साधने के बदले उसे व्यर्थ खोता है। उत्तम मानवभव प्राप्त करके, मूढ़ जीव अपने आत्महित का साधन नहीं करते और मैं पर का कल्याण कर दूं - ऐसा व्यर्थ अभिमान करके मनुष्यभव हार जाते हैं। ___मनुष्यपना प्राप्त करके बहुत धन संग्रहित हो, उससे कहीं आत्मा की महिमा नहीं बढ़ जाती और निर्धनपना होने से आत्मा की महिमा घट नहीं जाती। जिस प्रकार निर्धन और धनवान के जन्म और मरण का एक ही मार्ग है; इसी प्रकार धर्म का और मोक्ष का मार्ग भी समस्त जीवों के लिए एक ही प्रकार का है। धनवान को धर्म हो और निर्धन को नहीं हो - ऐसा नहीं है, क्योंकि सधनता और निर्धनता से धर्म नहीं होता, अपितु आत्मा का भान करने से धर्म होता है। निर्धन हो या धनवान, जो आत्मा का भान करता है, उसे ही धर्म होता है। देखो, मात्र मानवदेह से ही मोक्ष होता है, इस कारण इस मानवदेह को उत्तम कहा है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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