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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [111 स्वभाव की दृष्टि से देखा जाए तो प्रत्येक आत्मा का स्वभाव परिपूर्ण है। सिद्ध परमात्मा में जितनी सामर्थ्य है, उतनी ही सामर्थ्य प्रत्येक आत्मा में है परन्तु अज्ञानी जीव उसे भूलकर शरीर और विकारभाव जितना ही अपने को मानता है; इसलिए संसार में परिभ्रमण करता है। ज्ञानीजन तो अपने परिपूर्ण आत्मस्वभाव की पहचान करके उसके आश्रय से मोक्ष प्राप्त करने का साधन करते हैं और संसार का पार पा जाते हैं। आत्मा की पहचान करके मोक्ष प्राप्ति का साधन इस मनुष्यदेह में ही है, इसके अतिरिक्त दूसरी गति में आत्मा का भान हो सकता है परन्तु मोक्षदशा का पूर्ण साधन नहीं हो सकता। पुण्य करे तो स्वर्ग में जाए और पाप करे तो नरक में जाए तथा माया-कपट के भाव करे तो तिर्यञ्च में जाए; वहाँ कोई-कोई जीव, आत्मा का भान प्रगट करते हैं परन्तु मोक्षदशा प्राप्त होने योग्य पूर्ण पुरुषार्थ वहाँ नहीं हो सकता। यद्यपि शरीर के कारण मोक्षदशा नहीं रुकती, परन्तु वहाँ जीव की अपनी योग्यता ही उस प्रकार की होती है। मोक्ष का उपाय सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र ही है। उसका परिपूर्ण प्रयत्न इस मनुष्यभव में ही होता है; इसलिए मोक्षदशा की प्राप्ति इस मनुष्यभव में ही होती है। ऐसा मनुष्यदेह प्राप्त करके भी मतिहीन अज्ञानी जीव, उसे विषय-भोगों में व्यर्थ गँवा देता है। इस सम्बन्ध में पण्डित श्री बनारसीदासजी कहते हैं कि - 'ज्यों मतिहीन विवेक बिना नर, साज मतंगज ईंधन ढोवें, कंचन भाजन धूल भरे शठ, मूढ सुधारस सौं पग धोवे। वादिन काग उड़ावन कारण, डार महामणि मूरख रोवे, त्यों ये दुर्लभ देह बनारसी, पाय अजान अकारथ खोवे।' Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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