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________________ www.vitragvani.com 108] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 जाना, तब तक व्रत-तप-दान अथवा यात्रा इत्यादि करने से क्या हुआ? आत्मा की पहचान बिना मनुष्यदेह की अथवा व्रतादि की परमार्थमार्ग में कुछ गिनती नहीं है। आत्मा की पहचान के कारण ही मनुष्यदेह की उत्तमता कही गयी है। ___'यह संसार बहुत दुःख से भरा हुआ है। ज्ञानी इसमें से तरकर पार होने का प्रयत्न करते हैं। मोक्ष को साधकर वे अनन्त सुख में विराजमान होते हैं। यह मोक्ष दूसरी किसी देह से मिलनेवाला नहीं है। देव, तिर्यञ्च या नरक, इनमें से एक भी गति से मोक्ष नहीं है; मात्र मानवदेह से मोक्ष है।' यह संसार महादुःख से भरपूर है। अज्ञानभाव के कारण जीव चार गतियों में परिभ्रमण करता है। देव, मनुष्य, तिर्यञ्च और नरक - यह चार गतियाँ हैं। उनमें मनुष्यदेह अनन्त काल में प्राप्त होती है और मनुष्यदेह में भी सत्समागम की प्राप्ति तो महा-दुर्लभ है। मनुष्यभव प्राप्त करके भी जीव ने अपने आत्मा की दरकार नहीं की है और बाहर में देह, परिवार इत्यादि पर की वार्ता में रुककर मानव जीवन व्यर्थ गँवा दिया है। यह तो 'घर का बेटा भूखों मरे और पड़ोसी के लिए आटा' - जैसी बात है। अपने आत्मा को समझने की दरकार नहीं की है और पड़ोसी अर्थात् परवस्तु को जानने में तथा उसका अभिमान करने में रुक गया है। ___ यह जीव, अपने आत्मा की समझ तो करता नहीं है और मैं पर का भला कर दूं - ऐसा मानता है। अरे भाई! परवस्तु में आत्मा का अधिकार चलता ही नहीं। शरीर में रोग हो तो उसके अभाव की इच्छा होने पर भी वह नहीं मिटता है और रोग लाने की इच्छा Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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