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[ सम्यग्दर्शन : भाग - 2
इसी प्रकार आत्मा अनादि काल से स्वभावघर से छूटकर संसार में बैल की तरह परिभ्रमण कर रहा है... श्रीगुरु उसे स्वभावघर में आने की बात सुनाते हैं । यदि अपनी मुक्ति की बात सुनकर भी जीव को उत्साह नहीं आवे तो वह उस बैल से भी गया - बीता है । अरे ! पात्र जीव को तो अपने स्वभाव की बात सुनते ही अन्दर से मुक्ति का उल्लास आता है और उसका परिणमन वेगपूर्वक स्वभावसन्मुख ढल जाता है ।
भाई ! तूने जितने काल संसार में परिभ्रमण किया है, उतना काल मोक्ष का उपाय करने में नहीं लगता, क्योंकि विकार की तुलना में स्वभाव का वीर्य अनन्तगुणा है; इसलिए वह अल्प काल में ही मोक्ष को साध लेता है... परन्तु इसके लिए जीव को अन्दर में यथार्थ उल्लास आना चाहिए।
(पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचन से )
अन्दर में यथार्थ उल्लास आना चाहिए ।
भाई ! तूने जितने काल संसार में परिभ्रमण किया है, उतना काल मोक्ष का उपाय करने में नहीं लगता, क्योंकि विकार की तुलना में स्वभाव का वीर्य अनन्तगुणा है; इसलिए वह अल्प काल में ही मोक्ष को साध लेता है... परन्तु इसके लिए जीव को अन्दर में यथार्थ उल्लास आना चाहिए।
(पूज्य गुरुदेव श्री कानजीस्वामी)
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