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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [103 मोक्षार्थी को मुक्ति का उल्लास ___ आत्मार्थी के परिणाम उल्लसित होते हैं, क्योंकि आत्मस्वभाव को साधकर, अल्प काल में संसार से मुक्त होकर सिद्ध होता है; इससे अपनी मुक्ति का उसे निरन्तर उल्लास होता है और इस कारण वह उल्लसित वीर्यवान होता है। (१) यह आत्मा, ज्ञानस्वभावी है परन्तु इसने अनादि काल से एक सैकेण्डमात्र भी अपने स्वभाव को लक्ष्य में नहीं लिया; इसलिए उस स्वभाव की समझ भी कठिन लगती है और शरीर आदि बाह्य क्रियाओं में धर्म मानकर, व्यर्थ ही मनुष्यभव गँवा देता है। यदि आत्मस्वभाव का रुचि से अभ्यास करे तो स्वभाव की समझ सहज है; स्वभाव की बात कठिन नहीं होती। प्रत्येक आत्मा में समझने की सामर्थ्य है... परन्तु अपनी मुक्ति की बात सुनकर अन्दर से उल्लास आना चाहिए, तभी यह बात शीघ्र समझ में आ सकती है। जिस प्रकार जब बैल को घर से छुड़ाकर खेत में काम करने के लिये ले जाते हैं, तब तो वह धीमे-धीमे जाता है और समय भी बहुत लगाता है परन्तु खेत के काम से छूटकर घर की तरफ वापस आता है, तब दौड़ते-दौड़ते आता है... क्योंकि उसे पता है कि अब कार्य के बन्धन से छूटकर घर पर चार पहर तक शान्ति से घास चरना है; इसलिए उसे उत्साह आता है और उसकी गति में वेग / तीव्रता आती है। देखो, बैल जैसे प्राणी को भी छूटकारे का उत्साह आता है; Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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