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________________ www.vitragvani.com 102] [सम्यग्दर्शन : भाग-2 अल्प काल में मुक्ति हुए बिना नहीं रहेगी। पहले तो जीव को संसार परिभ्रमण करते हुए, मनुष्यभव और सत् का श्रवण प्राप्त होना ही महाकठिन है और कदाचित् सत् का श्रवण प्राप्त हो, तब भी जीव ने उसे अन्तर में नहीं बैठाया; इसलिए संसार में ही परिभ्रमण किया। भाई! यह सब तुझे शोभा नहीं देता... ऐसे महामूल्यवान अवसर में भी तू आत्मस्वभाव को नहीं समझेगा तो फिर कब समझेगा और यह समझे बिना तेरे भ्रमण का अन्त कैसे आएगा? इसलिए अन्दर से उल्लास लाकर सत्समागम में आत्मा की सच्ची समझ कर ले।. (पूज्य गुरुदेवश्री के प्रवचन से) 158 यह आत्मा को साधने की विधि है जिस प्रकार धन की प्राप्ति का अभिलाषी राजा को पहचान कर, उसकी श्रद्धा करके, महा-उद्यमपूर्वक उसका सेवा करके उसे रिझाता है। विनय से, भक्ति से, ज्ञान से, सर्व प्रकार से सेवा करके, राजा को रिझा कर प्रसन्न करता है। इसी प्रकार मोक्षार्थी जीव, अन्तर्मुख प्रयत्न से प्रथम तो आत्मा को जानता है और श्रद्धा करता है। ज्ञान द्वारा जो आत्मा की अनुभूति हुई, वह अनुभूति ही मैं हूँ - ऐसे आत्मज्ञानपूर्वक प्रतीति करता है और तत्पश्चात् आत्मस्वरूप में ही लीन होकर आत्मा को साधता है - यह आत्मा को साधने की विधि है। (पूज्य गुरुदेवश्री कानजीस्वामी) Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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