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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-2] [105 महादुर्लभ मानव जीवन हे जीव! महापुण्ययोग से तूने यह मनुष्य अवतार प्राप्त किया है... संसार के दूसरे अवतारों की अपेक्षा यह मनुष्य अवतार उत्तम माना गया है... ऐसे मूल्यवान् मानव जीवन में क्या करने योग्य है ? किस उपाय से सच्चे सुख की प्राप्ति होती है ? जिज्ञासु को किस प्रकार का तत्त्वविचार करना चाहिए? - इन सबका सुन्दर विवेचन यहाँ एकदम सरल शैली में किया गया है। श्रीमद् राजचन्द्रजी को मात्र सात वर्ष की उम्र में पूर्व भवों का ज्ञान हुआ था। उनके ज्ञान का क्षयोपशम बहुत था, सोलह वर्ष की अल्प आयु में मात्र तीन दिन में उन्होंने मोक्षमाला के 108 पाठों की रचना की है। उसमें चौथे पाठ में मानवदेह की दुर्लभता और उत्तमता किस प्रकार है ? - यह बात समझायी गयी है। ___ 'तुमने सुना तो होगा कि विद्वान् मानवदेह को दूसरी सभी देहों की अपेक्षा उत्तम कहते हैं परन्तु उत्तम कहने का कारण तुम नहीं जानते होंगे; इसलिए मैं उसे कहता हूँ।' यह मनुष्यदेह अनन्त काल में प्राप्त होती है, इसमें धनादिक प्राप्त होना कोई अपूर्व नहीं है और उससे आत्मा की महिमा भी नहीं है। आत्मा, अन्तर में ज्ञान-आनन्द से भरपूर पदार्थ है, उसकी समझ करना ही अपूर्व है और उसी से मानवदेह की उत्तमता है। विद्वान्, मानवदेह को अन्य सब देहों से उत्तम कहते हैं परन्तु वह किसलिये उत्तम है, यह यहाँ समझाते हैं। अमूल्य तत्त्व विचार में श्रीमद्जी स्वयं कहते हैं कि - Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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