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________________ 100] www.vitragvani.com श्रेणिक राजा तीर्थङ्कर : किसका प्रताप [ सम्यग्दर्शन : भाग - 2 - श्रेणिक राजा को कोई व्रत या चारित्र नहीं था, तथापि 'मैं पर का कर्ता नहीं, ज्ञाता ही हूँ' – ऐसी सम्यक् श्रद्धा के जोर से वे एकावतारी हुए। आगामी चौबीसी में इस भरतक्षेत्र के पहले तीर्थङ्कर भगवान होंगे। उन्हें अन्तर में निश्चयस्वरूप का यथार्थ भान था, पर का स्वामित्व नहीं था; इसीलिए एकावतारीपना हुआ। मुनिपना या व्रतादि न होने पर भी, श्रेणिक राजा एकावतारी हुए और तीर्थङ्कर होंगे। यह किसका प्रताप ? यह मात्र सम्यग्दर्शन की ही महिमा है । उसके बिना अनन्त बार धर्म के नाम से व्रतादि क्रियाएँ की, शरीर में काँटे चुभो डाले तो भी क्रोध न करे - ऐसी क्षमा रखी, तथापि धर्म नहीं हुआ; मात्र शुभभाव हुआ । इतना करने पर भी आत्मा, मन-वाणी-देह से पर है, पुण्य-पाप के विकल्प से रहित है ऐसी श्रद्धा हुई नहीं; इसलिए जीव संसार में भटका है। अतः भवभ्रमण से छूटने के अभिलाषी जीवों को सम्यग्दर्शन का प्रयत्न करना चाहिए। www 曲曲 Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai. -
SR No.007769
Book TitleSamyag Darshan Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages206
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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