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[सम्यग्दर्शन : भाग-2
जगह चतुराई बतलाता है, परन्तु आत्मा की समझ तो नहीं करता और धर्म की परीक्षा भी नहीं करता तो तेरी चतुराई किस काम की? थोड़ा समय रहा है, भाई! अब तू आत्मा की समझ कर, निवृत्ति ले, प्रवृत्ति घटा। अहो! मेरी मुक्ति कैसे हो? मुझे अब जन्म-मरण नहीं चाहिए' - ऐसा जिसे अन्तर में भव-भ्रमण का त्रास लगा हो, उसे आत्मा की समझ करना चाहिए। हे जीव! तूने अनन्त काल में सब परखा है परन्तु आत्मा को नहीं पहचाना।
परखे माणिक मोतियां परखे हेम कपूर; किन्तु आत्म परखा नहीं, वहाँ रहा दिक्मूढ़॥ एक था झवेरी; वह बहुत वृद्ध हो गया था। हीरा की परीक्षा करने में वह बहुत होशियार था। एक बार राजा के पास बहुत कीमती हीरा आया और सबसे उसकी कीमत करायी। अन्त में उस झवेरी से कीमत करायी। उसकी कला से राजा प्रसन्न हुआ और उसे इनाम देने का निर्णय किया।
उस राजा का दीवान धर्मात्मा था। सायंकाल उसने झवेरी को बुलाकर पूछा – भाई! तुम हीरा परखना तो जानते हो, परन्तु चैतन्य रत्न आत्मा को परखा है ? जिन्दगी में कुछ धर्म की समझ की है ? झवेरी को धर्म का कुछ पता नहीं था; इसलिए उसने इनकार किया।
दूसरे दिन सबेरे राजा ने झवेरी को बुलवाया और धर्मी दीवान से पूछा-दीवान जी! बोलो, इस झवेरी को क्या इनाम देंगे? दीवान ने गम्भीरता से कहा-महाराजा! इसे सात जूते मारने का इनाम देना चाहिए। राजा को आश्चर्य हुआ, इसलिए फिर से पूछा-अरे दीवानजी! सात जूते मारने का इनाम होता है ? कुछ
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