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[ सम्यग्दर्शन : भाग-1
यहाँ यह कहा है कि जो अरहन्त को द्रव्य-से-गुण-से पर्याय से जानता है, वह अपने आत्मा को जानता है और उसका मोह अवश्य क्षय हो जाता है । अरहन्त को द्रव्य, गुण, पर्याय से कैसे जानना चाहिए और मोह कैसे नष्ट होता है, यह आगे चलकर कहा जायेगा। पहले कहा जा चुका है कि जो अरहन्त को द्रव्यरूप से, गुणरूप से और पर्यायरूप से जानता है, वह अपने आत्मा को जानता है और उसका मोह अवश्य क्षय को प्राप्त होता है । अरहन्त को द्रव्य, गुण, पर्यायरूप से किस प्रकार जानना चाहिए और मोह का नाश कैसे होता है - यह सब यहाँ कहा जायेगा ।
श्री प्रवचनसार की गाथा 80-81-82 में सम्पूर्ण शास्त्र का सार भरा हुआ है। इसमें अनन्त तीर्थङ्करों के उपदेश का रहस्य समा जाता है । आचार्य प्रभु ने 82वीं गाथा में कहा है कि 80-81वीं गाथा में कथित विधि से ही समस्त अरहन्त, मुक्त हुए हैं । समस्त तीर्थङ्कर इसी उपाय से पार हुए हैं और भव्य जीवों को इसी का उपदेश दिया है। वर्तमान भव्य जीवों के लिये भी यही उपाय है। मोह का नाश करने के लिए इसके अतिरिक्त दूसरा कोई उपाय नहीं है।
जिन आत्माओं को पात्र होकर अपनी योग्यता के पुरुषार्थ के द्वारा स्वभाव को प्राप्त करना है और मोह का क्षय करना है, उन आत्माओं को क्या करना चाहिए ? यह यहाँ बताया गया है। पहले तो अरहन्त को द्रव्य-गुण-पर्याय से जानना चाहिए। भगवान अरहन्त का आत्मा कैसा था, उनके आत्मा के गुणों की शक्ति-सामर्थ्य कैसी थी और उनकी पूर्ण पर्याय का क्या स्वरूप है ? इसके यथार्थ भाव को जो निश्चय करता है, वह वास्तव में अपने ही द्रव्य, गुण,
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