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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [75 तीनों में एक ही बात कही है कि यदि उसे पहचान ले तो मिथ्यादृष्टि न रहे। इसमें जो पहिचानने की बात की है, वह यथार्थ निर्णयपूर्वक जानने की बात है। यदि देव-गुरु-शास्त्र को यथार्थतया पहचान ले तो उसे अपने आत्मा की पहचान अवश्य हो जाए और उसका दर्शनमोह निश्चय से क्षय हो जाए। यहाँ 'जो द्रव्य-गुण-पर्याय से अरहन्त को जानता है, उसे ....' ऐसा कहा है, किन्तु सिद्ध को जानने को क्यों नहीं कहा? इसका कारण यह है कि यहाँ शुद्धोपयोग का अधिकार चल रहा है। शुद्धोपयोग से पहले अरहन्त पद प्रगट होता है; इसलिए यहाँ अरहन्त को जानने की बात कही गयी है और फिर जानने में निमित्तरूप सिद्ध नहीं होते, किन्तु अरहन्त निमित्तरूप होते हैं तथा पुरुषार्थ की जागृति से अरहन्तदशा के प्रगट हो जाने पर, अघातिया कर्मों को दूर करने के लिये पुरुषार्थ नहीं है, अर्थात् प्रयत्न से केवलज्ञान-अरहन्तदशा प्राप्त की जाती है, इसलिए यहाँ अरहन्त की बात कही है। वास्तव में तो अरहन्त का स्वरूप जान लेने पर समस्त सिद्धों का स्वरूप भी उसमें आ ही जाता है। अरहन्त के द्रव्य-गुण-पर्याय की भाँति ही अपने आत्मा के स्वरूप को जानकर, शुद्धोपयोग की श्रेणी के द्वारा जीव, अरहन्तपद को प्राप्त होता है। जो अरहन्त के द्रव्य, गुण, पर्याय, स्वरूप को जानता है, उसका मोह नाश को अवश्य प्राप्त होता है। यहाँ जो जाणदि' अर्थात् 'जो जानता है'- ऐसा कहकर ज्ञान का पुरुषार्थ सिद्ध किया है। जो ज्ञान के द्वारा जानता है, उसका मोह क्षय हो जाता है, किन्तु जो ज्ञान के द्वारा नहीं जानता, उसका मोह नष्ट नहीं होता। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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