SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 77
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [61 गुण नहीं, पर्याय है; इसलिए उसे औपशमिकभाव इत्यादि की अपेक्षा लागू पड़ती है। शास्त्रों में कहीं-कहीं अभेदनय की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन को आत्मा कहा गया है, इसका कारण यह है कि वहाँ द्रव्य-गुण -पर्याय के भेद का लक्ष्य और विकल्प छुड़ाकर अभेद द्रव्य का लक्ष्य कराने का प्रयोजन है। द्रव्यार्थिकनय से द्रव्य-गुण-पर्याय में भेद नहीं है, इसलिए इस नय से तो द्रव्य-गुण-पर्याय तीनों द्रव्य ही हैं, किन्तु जब पर्यायार्थिकनय से द्रव्य-गुण-पर्याय के भिन्नभिन्न स्वरूप का विचार करना होता है, तब जो द्रव्य है, वह गुण नहीं और गुण है, वह पर्याय नहीं; क्योंकि इन तीनों के लक्षण भिन्न-भिन्न हैं। द्रव्य-गुण-पर्याय के स्वरूप को जैसा का तैसा जानने के बाद उसके भेद का विकल्प तोड़कर, अभेद द्रव्य ही अनुभव में आता है - यह बताने के लिये शास्त्र में द्रव्य-गुणपर्याय को अभिन्न कहा गया है; परन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिए कि सम्यग्दर्शन त्रैकालिक द्रव्य अथवा गुण है, किन्तु सम्यग्दर्शन, पर्याय ही है। सम्यग्दर्शन को कहीं-कहीं गुण भी कहा जाता है, किन्तु वास्तव में तो वह श्रद्धागुण की निर्मलपर्याय है, किन्तु जैसे गण त्रिकाल निर्मल है, वैसे ही उसकी वर्तमान पर्याय भी निर्मल हो जाने से अर्थात् निर्मल पर्याय, गुण के साथ अभेद हो जाने से अभेदनय की अपेक्षा से उस पर्याय को भी गुण कहा जाता है। श्री अमृतचन्द्राचार्यदेव ने प्रवचनसार में चारित्राधिकार की 42वीं गाथा की टीका में सम्यग्दर्शन को स्पष्टतया पर्याय कहा है। (देखो पृष्ठ 335 ) तथा उसी में ज्ञानाधिकार की 8वीं गाथा की Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy