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________________ www.vitragvani.com [21 सम्यग्दर्शन : भाग-1] है ? इसलिए तुम सर्व कार्यों से पहले, अपने ज्ञान में सर्वज्ञ की सत्ता को सिद्ध करो, यही धर्म का मूल है और यही जिनाम्नाय है। आत्मकल्याण के अभिलाषियों से अनुरोध जिन्हें आत्मकल्याण करना है, उन्हें पहले जिनवचनरूप आगम का सेवन, युक्ति का अवलम्बन, परम्परा गुरु का उपदेश तथा स्वानुभव यह कर्तव्य है। प्रथम प्रमाण-नय-निक्षेप आदि उपाय से वचन की सत्यता का अपने ज्ञान में निर्णय करके गम्यमान हुए सत्यरूप साधन के बल से उत्पन्न जो अनुमान है, उससे सर्वज्ञ की सत्ता को सिद्ध करके, उसका श्रद्धान-ज्ञान-दर्शन, पूजन, भक्ति और स्तोत्र, नमस्कारादि करना योग्य है। श्री जिनेन्द्रदेव का सेवक जानता है कि मेरा भला-बुरा मेरे परिणामों से ही होता; ऐसा समझकर वह अपने हित के उपाय में प्रर्वतता है तथा अशुद्ध कार्यों को छोड़ता है। जिसे जिनदेव का सच्चा सेवक होना हो तथा जिनदेव के द्वारा उपदिष्ट मोक्षमार्गरूप प्रवृत्ति करना हो, उसे सबसे पहले जिनदेव के सच्चे स्वरूप का अपने ज्ञान में निर्णय करके उसका श्रद्धान करना चाहिए, उसका यही कर्तव्य है। आत्मज्ञान से शाश्वत सुख जो जाने शुद्धात्म को, अशुचि देह से भिन्न। वे ज्ञाता सब शास्त्र के, शाश्वत सुख में लीन॥ (-योगसार 85) जो शुद्ध आत्मा को अशुचिरूप शरीर से भिन्न जानते हैं, वे सर्वशास्त्र के ज्ञाता हैं और शाश्वत सुख में लीन होते हैं। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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