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[सम्यग्दर्शन : भाग-1
सच्चा ज्ञान सम्यग्दृष्टि को होता है :
अपने-अपने प्रकरण में अपने-अपने ज्ञेयसम्बन्धी अल्प अथवा विशेष ज्ञान सबको होता है; क्योंकि लौकिक कार्य तो सभी जीव जानपने पूर्वक ही करते हैं; इसलिए लौकिक जानपना तो सभी जीवों के थोड़ा-बहुत हो ही रहा है, किन्तु मोक्षमार्ग में प्रयोजनभूत जो आप्त, आगम आदि पदार्थ हैं, उनका यथार्थ ज्ञान सम्यग्दृष्टि को ही होता है तथा सर्व ज्ञेय का ज्ञान केवली भगवान को ही होता है - ऐसा जानना चाहिए। जिनमत की आज्ञा :
कोई कहता है कि सर्वज्ञ की सत्ता का निश्चय हम से नहीं हुआ तो क्या हुआ? वे तो सच्चे हैं न? इनकी पूजन आदि करना निष्फल थोड़े ही जाता है ?
उत्तर – जो तुम्हारी किञ्चित् मन्द कषायरूप परिणति होगी तो पुण्यबन्ध तो होगा, किन्तु जिनमत में तो देव के दर्शन से आत्मदर्शनरूप फल होना कहा है, वह तो नियम से सर्वज्ञ की सत्ता जानने से ही होगा, अन्य प्रकार से नहीं; यही श्री प्रवचनसार, गाथा -80 में कहा है।
फिर तम लौकिक कार्यों में तो इतने चतर हो कि वस्त की सत्ता आदि का निश्चय किये बिना सर्वथा प्रवृत्ति नहीं करते और यहाँ तुम सत्ता का निश्चय भी न करके सयाने अनध्यवसायी (बिना निर्णय के) होकर प्रवृत्ति करते हो, यह बड़ा आश्चर्य है ! श्री श्लोकवार्तिक में कहा है कि - जिसके सत्ता का निश्चय नहीं हुआ, परीक्षक को उसकी स्तुति आदि कैसे करना उचित
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