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________________ www.vitragvani.com सम्यग्दर्शन : भाग-1] [ 19 उत्पन्न होता है और वह वाणी किसी वीतराग पुरुष के आश्रित है; इसलिए जो सत्पुरुष हैं, उन्हें अपने कल्याण के लिये सर्वसुख का मूलकारण जो आप्त-अरहन्त सर्वज्ञ हैं, उनका युक्तिपूर्वक भलीभाँति सर्वप्रथम निर्णय करके आश्रय लेना योग्य है । अब जिनका उपदेश सुनते हैं और जिनके कहे हुए मार्ग पर चलना चाहते हैं तथा जिनकी सेवा, पूजा, आस्तिकता, जाप, स्मरण, स्तोत्र, नमस्कार और ध्यान करते हैं – ऐसे जो अरहन्त सर्वज्ञ हैं, उनका स्वरूप पहले अपने ज्ञान में तो प्रतिभासित हुआ ही नहीं है, तब फिर तुम उनका निश्चय किये बिना किसका सेवन करते हो ? लोक में भी ऐसी पद्धति है कि अत्यन्त निष्प्रयोजन बात का भी निर्णय करके प्रवृत्ति की जाती है और इधर तुम आत्महित के मूल आधारभूत अरहन्तदेव का निर्णय किए बिना ही प्रवृत्ति कर रहे हो, यह बड़ा ही आश्चर्य है ! और फिर तुम्हें निर्णय करने योग्य ज्ञान भी प्राप्त हुआ है; इसलिए तुम इस अवसर को वृथा मत गँवाओ । आलस्य आदि छोड़कर उसके निर्णय में अपने को लगाओ, जिससे तुम्हें वस्तु का स्वरूप; जीवादि का स्वरूप; स्व-पर का भेदविज्ञान; आत्मा का स्वरूप; हेय - उपादेय और शुभ-अशुभशुद्ध-अवस्थारूप अपने पद - अपद का स्वरूप इन सबका सर्व प्रकार से यथार्थ ज्ञान हो । सर्व मनोरथ सिद्ध करने का उपाय जो अरहन्त सर्वज्ञ का यथार्थ ज्ञान है, वह जिस प्रकार से सिद्ध हो, वह प्रथम करना योग्य है । इस प्रकार सबसे पहले अरहन्त सर्वज्ञ का निर्णय करनेरूप कार्य करना चाहिए, यही श्री गुरु की मूल शिक्षा है । Shree Kundkund - Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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