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[सम्यग्दर्शन : भाग-1
रमें जो आत्मस्वरूप में, तजकर सब व्यवहार। सम्यग्दृष्टि जीव वह, शीघ्र होय भवपार॥
(-योगसार-८९) जो सर्व व्यवहार को छोड़कर, आत्मस्वरूप में रमणता करते हैं, वे सम्यग्दृष्टि जीव हैं और वे शीघ्र ही संसार-सागर से पार हो जाते हैं।
सिद्ध हुये अरु होंयगे, हैं अब भी भगवन्त। आतम दर्शन से हि यह, जानो होय निःशङ्क॥
(-योगसार-१०७) जो सिद्ध हो गये हैं, भविष्य में होंगे और वर्तमान में हो रहे हैं - वे सब निश्चय से आत्मदर्शन (सम्यग्दर्शन) द्वारा ही सिद्ध होते हैं – ऐसा निःशङ्कतया जानो।
श्री जिनेन्द्र देव-कथित मुक्तिमार्ग सम्यग्दर्शन-सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्र-इन तीन स्वरूप मोक्षमार्ग है; उसी से संवर-निर्जरारूप क्रिया होती है।
(-तत्त्वानुशासन गाथा ८, २४) सर्व दुःखों की परम-औषधि जो प्राणी कषाय के आताप से तप्त हैं, इन्द्रियविषयरूपी योग से मूर्च्छित हैं और इष्ट-वियोग तथा अनिष्ट-संयोग से खेद-खिन्न हैं - उन सबके लिये सम्यक्त्व परम हितकारी औषधि है।
(-सारसमुच्चय-३८) सम्यक्त्वी सर्वत्र सुखी सम्यग्दर्शनसहित जीव का नरकवास भी श्रेष्ठ है, परन्तु
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