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सम्यग्दर्शन : भाग-1]
[323 मोक्ष प्राप्त करने के लिए, हे योगी ! शुद्धात्मा और जिन भगवान में किञ्चित् भी भेद न समझो -इस प्रकार निश्चय से मानो।
जब तक एक न जानता, परम पुनीत स्वभाव। व्रत-तप सब अज्ञानी के, शिव हेतु न कहाय॥
(-योगसार-२९) जब तक एक परम शुद्ध पवित्रभाव का ज्ञान नहीं होता, तब तक मूढ़ लोगों को जो व्रत, तप, संयम और मूलगुण हैं, वे मोक्ष के कारण नहीं कहलाते।
धन्य अहो! भगवन्त बुध, जो त्यागे परभाव। लोकालोक प्रकाश कर, जाने विमल स्वभाव॥ विरला जाने तत्त्व को, श्रवण करे अरु कोई। विरला ध्यावे तत्त्व को, विरला धारे कोई॥
(-योगसार ६४, ६६) अहो! उन भगवान ज्ञानियों को धन्य है कि जो परभाव का त्याग करते हैं और लोकालोक-प्रकाशक-ऐसे आत्मा को जानते हैं। विरले ज्ञानीजन ही तत्त्व को जानते हैं, विरले जीव ही तत्त्व का श्रवण करते हैं, विरले जीव ही तत्त्व का ध्यान करते हैं और विरले जीव ही तत्त्व को अन्तर में धारण करते हैं।
सम्यग्दृष्टि जीव का, दुर्गति गमन न होय। यद्यपि जाय तो दोष नहिं, पूर्व कर्म क्षय होय॥
(-योगसार-८८) सम्यग्दृष्टि जीव, दुर्गति में नहीं जाते। (पूर्वबद्ध आयु के कारण) कदाचित् जायें; तथापि वह उनके सम्यक्त्व का दोष नहीं है, परन्तु उलटा पूर्वकर्मों का क्षय ही करते हैं।
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