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________________ www.vitragvani.com 308] [सम्यग्दर्शन : भाग-1 है, परन्तु अभेद के लक्ष्य के समय व्यवहार का लक्ष्य नहीं होता, क्योंकि व्यवहार के लक्ष्य में भेद होता है और भेद के लक्ष्य में परमार्थ-अभेदस्वरूप लक्ष्य में नहीं आता, इसलिए सम्यग्दर्शन के लक्ष्य में अभेद ही होता है, एकरूप अभेद वस्तु ही सम्यग्दर्शन का विषय है। सम्यग्दर्शन ही शान्ति का उपाय है : अनादि से आत्मा के अखण्ड रस को सम्यग्दर्शनपूर्वक नहीं जाना, इसलिए पर मैं और विकल्प में जीव, रस को मान रहा है, परन्तु मैं अखण्ड एकरूप स्वभाव हूँ, उसी में मेरा रस है; पर में कहीं भी मेरा रस नहीं है; इस प्रकार स्वभावदृष्टि के बल से एकबार सबको नीरस बना दो। जो शुभ विकल्प उठते हैं, वे भी मेरी शान्ति के साधक नहीं हैं, मेरी शान्ति मेरे स्वरूप में है; इस प्रकार स्वरूप के रसानुभव में समस्त संसार को नीरस बना दे तो तुझे सहजानन्द -स्वरूप के अमृतरस की अपूर्व शान्ति का अनुभव प्रगट होगा, उसका उपाय सम्यग्दर्शन ही है। संसार का अभाव सम्यग्दर्शन से ही होता है : अनन्त काल से अनन्त जीव संसार में परिभ्रमण कर रहे हैं और अनन्त काल में अनन्त जीव सम्यग्दर्शन के द्वारा पूर्ण स्वरूप की प्रतीति करके मुक्ति को प्राप्त हुए हैं। इस जीव ने संसारपक्ष तो अनादि से ग्रहण किया है, परन्तु सिद्ध का पक्ष कभी ग्रहण नहीं किया। अब सिद्ध का पक्ष करके अपने सिद्धस्वरूप को जानकर, संसार का अभाव करने का अवसर आया है और उसका उपाय एकमात्र सम्यग्दर्शन ही है। Shree Kundkund-Kahan Parmarthik Trust, Mumbai.
SR No.007768
Book TitleSamyag Darshan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
PublisherKundkund Kahan Parmarthik Trust Mumbai
Publication Year
Total Pages344
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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